घर केवल चार दीवारें और एक छत नहीं होता, वह इससे कहीं ज्यादा होता है. वह हम में तमाम तरह की भावनाएं और विचार पैदा करता है. कुछ लोगों के लिए, वह सुरक्षा का एहसास होता है; तो कुछ के लिए आराम और वहीं कुछ अन्य लोगों के लिए वह हैसियत और उपलब्धि का प्रतीक होता है. पर घर से संबंधित एक और पहलू भी है. उसका संबंध आंकड़ों से है. धन का पहलू भी महत्वपूर्ण है क्योंकि घर खरीदना, अक्सर किसी भी आम भारतीय के जीवन का सबसे बड़ा फाइनेंशियल ट्रांजैक्शन होता है. बहुत से लोग इस दुविधा में होते हैं कि वे घर किराए पर लें या खरीदें.

यहां हम ऐसे 9 कारण बता रहे हैं कि क्यों अपना घर होना किराए पर रहने से ज्यादा लाभदायक है:

1.मकान-मालिक की कोई चिक-चिक नहीं:

जब आपके पास अपना घर होता है तो चीजें आपके काबू में होती हैं. आपको मकान-मालिक से नहीं निपटना होता; बात चाहे मामूली मरम्मत की हो या पूरे घर के कायाकल्प की, किराए पर रहना कई तरह से परेशानी का सबब होता है. आप पानी, बिजली, रखरखाव और लगभग हर चीज के लिए मकान-मालिक पर निर्भर होते हैं.

किराए के घर की तुलना में घर खरीदने के 9 फायदे

  • मकान-मालिक की कोई चिक-चिक नहीं
  • भावनात्मक सुरक्षा
  • कोई अनिश्चितता नहीं
  • कोई समझौता नहीं
  • आसान फाइनेंशियल विकल्प
  • होम लोन पर टैक्स लाभ
  • अपनी खुद की प्रॉपर्टी का निर्माण
  • एक निवेश के तौर पर घर
  • सामाजिक मानदंडों की संतुष्टि

2.भावनात्मक सुरक्षा:

जब आप घर खरीदते हैं तो आप अपने परिवार को उनकी खुद की जगह प्रदान करते हैं; एक घर प्रदान करते हैं. दिन भर मेहनत करके, आने-जाने में थकान से चूर हो कर और लगातार तनाव झेलने के बाद अपने खुद के घरौंदे में लौटना सुरक्षा और आराम का एक ऐसा एहसास जागृत कर देता है जिसका स्थान दुनिया की और कोई चीज नहीं ले सकती है. आखिरकार, ‘घर’ आखिर घर होता है, जहां आप सच में निश्चिंत हो सकते हैं और जहां आपको किसी दिखावे की जरूरत नहीं पड़ती है.

3.कोई अनिश्चितता नहीं:

अपना खुद का घर होने से आपको इस बात का कोई डर या चिंता नहीं रहती कि कहीं मकान-मालिक लीज़ एग्रीमेंट को समय से पहले खत्म न कर दे. साथ ही, हर साल रेंट एग्रीमेंट रिन्यू कराने और बार-बार किराए पर मोलभाव करने का झंझट भी खत्म हो जाता है.

4.कोई समझौता नहीं:

किराया एक खर्चा है और हर आदमी खर्च घटाना ही चाहता है. इसलिए, आप को कई बातों जैसे स्थान, आकार और सुविधाओं के मामले में समझौता करना पड़ सकता है. वहीं दूसरी ओर, जब आप कोई घर खरीदते हैं तो आप यह पक्का करते हैं कि आपकी चुनी हुई प्रॉपर्टी आपकी उम्मीदों पर खरी उतरती हो.

5.आसान फाइनेंशियल विकल्प:

अब आसान फाइनेंस विकल्प उपलब्ध होने से अपने सपनों का घर खरीदना और भी आसान हो गया है. आपको अपने सपनों के घर के लिए पैसे इकट्ठा करने के लिए आपको 40 और 50 साल तक के इंतजार की कोई जरूरत नहीं है. आप इसे 20 साल की उम्र में ही खरीद सकते हैं और 50 साल के होते-होते या उससे पहले भी पूरी कीमत चुका कर घर के मालिक होने का गर्व हासिल कर सकते हैं. आपको अपना होम लोनलेंडर बहुत समझदारी से चुनना चाहिए, जो आपकी मौजूदा व आगामी इनकम पैटर्न के अनुसार होम लोन की EMI निर्धारित करके आपके होम लोन रीपेमेंट की मैनेजमेंट को सुविधाजनक बना सके.

6.होम लोन पर टैक्स लाभ:

आप के होम लोन के मूलधन और ब्याज का रीपेमेंट आपको आकर्षक टैक्स छूट दिलाता है. और याद रखें, किराये का घर आपकी जेब से जाने वाले किराए से कहीं अधिक महंगा पड़ता है. आपको वह महंगा इसलिए पड़ता है क्योंकि आप मकान-मालिक को दी गई डिपॉजिट की राशि (जो प्रीमियम स्थानों में काफी अधिक होती है) पर लीज़ की पूरी अवधि के दौरान कोई ब्याज नहीं पाते हैं.

7.अपनी खुद की प्रॉपर्टी का निर्माण:

किराया पूरी तरह से एक खर्चा है, तो किराया देने की बजाय आप होम लोन EMI भर सकते हैं जिससे समय के साथ आप अपनी खुद की प्रॉपर्टी बना लेंगे. इस तरह देखें तो आपकी चुकाई हर EMI के साथ आपके घर में आपका हिस्सा बढ़ता जाता है.

8.एक निवेश के तौर पर घर:

अगर किसी शहर में आपके लंबे समय तक रहने की संभावना है, तो वहां घर खरीदना ही बेहतर है ताकि आपको वहां अपनेपन और स्थायित्व का एहसास मिल सके. वह शहर और उसकी जीवनशैली आपकी अपनी होती जाती है. आपको महसूस होता है कि आखिरकार अब आप जिंदगी में सेटल हो गए हैं. इसके अलावा, आमतौर पर लंबे समय में प्रॉपर्टी की कीमतें बढ़ती ही हैं. घर खरीदने का अर्थ है कि आप समय के साथ आपनी संपदा भी बढ़ा रहे हैं. प्रॉपर्टी खरीदने में देरी करने से आपको ज्यादा रकम इन्वेस्ट करनी पड़ेगी (जिसके अलावा आपको कहीं अधिक लंबे समय तक किराया भी चुकाना होगा).

9.सामाजिक मानदंडों की संतुष्टि:

और आखिर में, अपना घर खरीदना समाज में उपलब्धि और सफलता का प्रतीक होता है. आपकी संपदा और आपकी हैसियत आपके अपने घर से मापी जाती है. इसलिए, घर खरीदकर आप समाज में अपनी हैसियत अच्छी-खासी बढ़ा सकते हैं.

आंकड़ों का तर्क

अब तक हमने घर खरीदने के पक्ष में जो तर्क दिए वे गुणात्मक हैं, पर किराए का घर बनाम खुद का घर की बहस का एक मात्रात्मक पहलू भी है. संख्याओं की नजर से दोनों विकल्प कहां ठहरते हैं? यहां एक नज़र डालिए:

25 वर्षीय संजय का उदाहरण लें. यहां हम दो स्थितियों पर विचार कर रहे हैं. पहली में, वे 25 की उम्र में स्थायी नौकरी पाते ही घर खरीद लेते हैं. दूसरी में, वे किराए के घर में बने रहते हैं और अपनी बचत को 8% ब्याज देने वाली बैंक डिपॉजिट में इन्वेस्ट करते हैं. दोनों ही मामलों में घर की शुरुआती वैल्यू ₹40 मानी गई है. घर खरीदने के लिए, वे 25 वर्ष की अवधि वाला ₹30 लाख का लोन लेते हैं. 50 वर्ष की उम्र में, जब वे अपना लोन चुका चुके होंगे, तो दोनों स्थितियों में उनके आंकड़े यह कहानी बयां करेंगे. लोन पर ब्याज की दर 9% मानी गई है.

किराए के घर की स्थिति
पहले वर्ष चुकाया गया वार्षिक किराया(घर की वैल्यू का 3% माना गया है) ₹1.20 लाख
किराए में वार्षिक वृद्धि(किराये के मूल्यांकन में समय-समय पर होने वाले रीसेट को भी विचार में लिया गया है) 10%
25 वर्षों के लिए भुगतान किया गया कुल किराया (इसमें हर साल होने वाली बढ़ोत्तरी शामिल है) (A) ₹118 लाख
उनकी बचत की वैल्यू, यह मानते हुए कि लोन का डाउन पेमेंट यानि ₹10 लाख और सांकेतिक EMI (₹25,176) को 25 वर्ष के लिए 8% की दर वाले डिपॉजिट में इन्वेस्ट किया गया है (B) ₹313 लाख
50 की उम्र में उनकी संपदा (B-A) होगी ₹195 लाख
खरीदे हुए घर की स्थिति
घर की वर्तमान वैल्यू ₹40 लाख
खरीद के लिए लिया गया लोन ₹30 लाख
लोन पर EMI(@ 9% ब्याज़ और 25 वर्षों की अवधि) Rs.25,176
25 वर्षों में चुकाई गईं EMI का योग (C) ₹76 लाख
₹10 लाख के डाउन पेमेंट की 8% प्रति वर्ष की दर से 25 वर्ष बाद वैल्यू (D) ₹69 लाख
घर की कुल लागत (E=C+D) ₹145 लाख
10% प्रति वर्ष मूल्य वृद्धि मानते हुए 25 वर्ष बाद घर की वैल्यू (F) ₹433 लाख
50 की उम्र में उनकी संपदा (F-E) होगी ₹288 लाख

ध्यान दें:सरलता बनाए रखने के लिए दोनों ही स्थितियों में टैक्स की गणना नहीं की गई है.

इस उदाहरण से साफ हो जाता है कि फाइनेंशियल/इकोनॉमिक नजरिए से भी घर खरीदना ही बेहतर है. यदि संजय किराए पर रहने की बजाय घर खरीदने का विकल्प चुनते हैं तो उनकी संपदा में लगभग ₹1 करोड़ अधिक होंगे. उनकी संपदा में यह बेशक एक बड़ा अंतर है. म लोन से टैक्स लाभ भी मिलते हैं यह देखते हुए, संपदा का वास्तविक अंतर कहीं बड़ा होने की संभावना है.

 निष्कर्ष

"किरायए पर रहें या खरीदें” के प्रश्न पर आप चाहे जिस नजरिए से देखें, खरीदना ही बेहतर विकल्प सिद्ध होता है. इनकम लेवल बढ़ने, उपयोग योग्य इनकम बढ़ने, आसान और नए किस्म के लोन विकल्प व टैक्स लाभ उपलब्ध होने के चलते अफोर्डेबिलिटी में सुधार होने के कारण घर खरीदना एक आकर्षक पेशकश बन गया है.

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